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Tuesday 3 July 2018

MANN KI KHUSHI

                       मन की खुशी 

नीटू ने एक दिन एक मैदक पकड़ा।चुपचाप
आकर अपने सहपाठी साजन के
बैग की जेब में डालकर जिप लगा
दी। उस समय सभी छात्र मैदान में
खेलने गए हुए थे। अब अगले पीरियड की
पटी बजी तो सभी छात्र अपने-अपने बैंच पर
आकर बैठ गए।
ज्यों ही साजन उसी जेब से पैसिल निकालने लगा
तो मेढक फुदक कर एकदम बाहर आया ।साजन
पवरा गया और अपने बैंच से गिरते-गिरो बचा
कक्षा में शोर मच गया।
"अरे यह भेंढक कहां से आया?" किसी ने पूछा।
जवाब दिया।
‘साजन के बैग से निकला है।'' दूसरे छात्र ने
साजन आंसा होकर कह रहा था, ''मेरे बैग को
जेब में जिस किसी ने इस मेंढक को बंद किया
था। मैं उसकी सर के पास शिकायत करुंगा।"
यह सुनकर शैरी बोला, "किस की शिकायत करोगे?
विनोदी स्वभाव का निरंजन भी झट से बोला, ''अरे
क्या तुम्हें पता है कि यह शरात किस ने की है?"
देखो दोस्तो, अयं मेंढक भी पढ़ने के लिए स्कूल
आया करेंगे। यह पहला स्टूडेंट है यानी हमारी
सहपाठी। अरे देखो तो सही, कैसे फुदकता जा
रहा है? लगता है पहले दिन ही अपना बैग घर
भूल आया है, लेने जा रहा है।"
कक्षा में ठहाका गंज पड़ा।
शांत हो गया। जिस किसी ने उसके साथ ऐसी
तभी अध्यापक जी ने कक्षा में प्रवेश किया। शोगुल
रह कर गुस्सा आ रहा था।
बेहूदा शरारत की थी, साजन को उस पर रह
आखिर बिल्ली थैले से बाहर आ ही गई। पता
चला कि यह नौटू की शरारत थी। उसे मुर्गा
बनाया गया।
ऐसा कर चुका था। एक दिन खेल का पौरियड
यह पहली दफा नहीं था, नीट पहले भी कई बार
चल रहा था। कुछ बच्चे अलग-अलग खेल
खेलने में व्यस्त थे और कुछ गप्पें हांक रहे थे।
नीटू कोई खास काम करने के मूड में था।
उसने देखा, मैदान में शहतूत के वृक्ष पर एक
हुए हैं।
फाला के घोंसले में दो छोटे-छोटे बच्चे बैठे। ‘वाह !'' नीटू के मुंह से निकला। उसने आव
देखा न ताव । झटपट वृक्ष पर चढ़कर दोनों
बच्चों को घोंसले से उठा लिया। दोनों बच्चों
की आंखें अभी खुली नहीं थीं। उसने इस बारे
किसी को कानों-कान खबर तक न होने दी।
नीटू ने दोनों बच्चों को अपने बैग की जेब में डाल
लिया। जब छुट्टी हुई तो वह उन बच्चों को घर
ले आया।
“आओ मा, तुझे कुछ दिखाऊं।'' नीटू ने अपनी
छोटी बहन रमा से कहा।
रमा तत्काल बोली, ''मैं जानती हूं। कोई न कोई शरारत ही करके दिखागा।''
नीट ने अपने बैग की जेब खोली।
मा ने गेय के अंदर इसका, फाख्ता के दो मासूम
बच्चे लुढ़के से पड़े थे।
''अरे मूर्ख, यह तुम ने क्या किया? ये मर जाएंगे।
कहां से उठाकर लाए ही इन मासूमों को?"
नीटू ने उन दोनों बच्चों को बाहर निकाला। अपनी
हथेली पर रखा। और गाने लगा, "ये बच्चे
प्यारे प्यारे, हैं मेरी आंख के तारे।ये बच्चे प्यारे
प्यारे हैं मेरी आंख के तारे।''
"अभी मम्मी को बताती हूं।'' रमा एकदम उठकर
रसोई में आने लगी जहां मम्मी चाय बना रही थी।
नीटू ने एकदम उसकी राह रोकते हुए कहा, ''रमा,
प्लीज मम्मी को मत बताना । मुझे डांट पड़ेगी।''
"तो तुमने ऐसा क्यों किया? इनकी तो अभी आंखें
झांटते हुए कहा।
भी नहीं खुली हैं। यह पाप है।'' रमा ने उसे
|-दर्शन सिंह 'आशट

'मा, वास्तव में में इन्हें बेचने के लिए उठा कर
लाया है।"
"क्या!बेचने के लिए इन मासूम बच्चों को, जिनकी
अभी आंखें तक नहीं खुली हैं। किस को बेचोगे।
इन्हें ?कितने लाख करोड़ रुपए मिल जाएंगे तुम्हें?''
रमा सवाल पर सवाल कर रही थी।
नीटू ने बताया कि उसके पड़ोसी दोस्त पिट को
पक्षियों के बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं और वह
अपने घर में भान्ति-भान्ति के बच्चों को पिंजरों
में रखना चाहता है ताकि उस के घर में पक्षियों
की चहचहाट होती रहे।
नीटू ने एकदम दोनों बच्चों को फिर अपने बैग
की जेब में रख लिया और आंखों ही आंखों में
रमा को यह सब कुछ मम्मी को न बताने का
अनुरोध किया।
"कितने पैसे मिलेंगे तुम्हें पिंटू से?''
'बीस रुपए।''
उन बीस रुपयों का क्या करोगे?''
"दो चाकलेट लाऊंगा। एक मेरे लिए और एक
तुम्हारे लिए।"
"वैरी गुड। वैरी गुड़। बहुत अच्छा बिजनैस करने जा रहे हो।'' अचानक ही तालियों की आवाज सीखा है?'' पापा सकते में आ गए।
के साथ यह बोल नीट और रमा के कानों से ''मैं अब तक तुझे जेब खर्च देता आ रहा हूं। लेकिन
टकराए। उनके पापा पर्दे के पीछे कुर्सी पर बैठे इसके बावजूद तुमने ऐसी हरकत की है। इसलिए
पढ़ने-लिखने का कोई काम कर रहे थे। उन आज से तुम्हारा जेब-खुर्च बंद।" पापा ने यह
की बातें उन्हें साफ सुनाई दे रही थीं। उन्होंने बात कही तो नीटू का रंग उड़ गया।
चुपके से थोड़ा-सा पर्दा उठाकर यह सारा तब तक मम्मी भी चाय लेकर आ गई थीं। जब
दृश्य देखा। उन्हें इस बात का पता चला तो उन्हें यह घटना
पापा उठ कर उनके पास आ गए। सुनकर आघात पहुंचा।
अपनी जीभ के स्वाद के लिए इन बच्चों को मां मम्मी ने नीटू से कहा, ''बेटा, मुझे तुमसे ऐसी
मे विछोड कर किसी को बेचना तुमने कहां से उम्मीद नहीं थी। क्या स्कूल में ऐसी शरारतें करने के लिए जाते हो?
"मम्मी, यह तो मैंने मजाक में कहा था रमा से कि
पिंटू को बेचने हैं। मैं तो बस मजाक मजाक
में उठा लाया हूं।''
""ऐसा मजाक?''यदि कोई तुझे हम सब से अलग
करदे तो तेरी क्या हालत होगी सोचा है कभी?"
नीटू ने कल्पना की। सचमुच ही उसे कोई दूर ले जाए
जहां कोई भी उसे जानने वाला न हो तो उसके
साथ क्या बीतेगी? वह मन ही मन कांप गया।
जमीन पर पड़े दोनों बच्चे लुढ़कने से लगे। लग
रहा था जैसे वह अपनी मां को ढूंढ रहे थे।
"अब तुमने इन बच्चों का क्या करना है, ये फैसला
हम तुझ पर ही छोड़ते हैं।'' मम्मी ने कहा।
'आगे से ऐसा नहीं करूंगा मम्मी। अभी इन बच्चों
को घोंसले में रख कर आता हूं।''
रमा ने कहा, ''स्कूल दूर है। चलो मैं तुम्हें अपनी
साइकिल पर लेकर चलती हूं। तुम बच्चों को
ध्यान से पकड़ कर मेरे पीछे बैठो।''
नीटू ने देखा, शहतूत की एक शाखा पर फाख्ता
घबराई हुई इधर-उधर देख रही थी। नीटू ने
दोनों बच्चों को फाख्ता के घोंसले में रख दिया।
कुछ समय बाद जब नीटू घर आया तो मम्मी
पापा उसके हाथ में मिट्टी का एक पात्र देखकर
हैरान रह गए। रास्ते में घुसे उसने बीस रुपए
का यह पात्र खरीदा था।
नीटू ने पात्र को पानी से भरा और घर की मुंडेर पर
रख आया।
अगले दिन नीटू ने सुबह जाकर देखा, दोनों बच्चे
अपनी मां-फाख्ता के पंखों के नीचे बैठे हुए थे।
नीटू ने मन ही मन कहा, ''अब मुझे फाख्ता-मां
के पास उनके बच्चों को देखकर जो खुशी मिल
रही है, मैं उसे बयान नहीं कर सकता।''

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